जिस को देखो वही है चुप-चुप सा
जैसे हर शख़्स इम्तिहान में है
खो चुके हम यक़ीन जैसी शय
तू अभी तक किसी गुमान में है
सर-बुलंदी नसीब हो कैसे
सर-निगूँ है के साए-बान में है
ख़ौफ़ ही ख़ौफ़ जागते सोते
कोई आसेब इस मकान में है
ख़ुद को पाया न उम्र भर हम ने
कौन है जो हमारे ध्यान में है ll

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